डीपी सिंह की रचनाएं
शाश्वत सत्य नीति कह लें विभीषण भले ही खरी रीति समझा ले कितनी भी मन्दोदरी
डीपी सिंह की रचनाएं
हमारे धैर्य को ही वो हमारा डर समझ बैठे ज़रा दो बाल क्या निकले उसे
डीपी सिंह की रचनाएं
कॅरोना की सीख रूप, दौलत और शोहरत का नशा मत कीजिए त्रोण में शर, म्यान
डीपी सिंह की रचनाएं
नींद आँखों से कहीं पर खो गई है हम जगे हैं, ख़ुद निगोड़ी सो गई
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया अम्मी जिसकी चर्च में, दादा कब्रिस्तान आज वही हिन्दुत्व पर, बाँट रहा है ज्ञान
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया बीवी बहना बाप की, पत्री रहे खँगाल पुलिस कमिश्नर लुप्त है, अजब राज्य का
डीपी सिंह की रचनाएं
मलिक नवाबी झाड़ रहा है, जैसे कौवा स्याना हो बेगानी शादी में मानो, अब्दुल्ला दीवाना
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया सूर्पणखा की नाक से, शुरू हई जो डाह कैसे पूरी स्वर्ण की, लंका हुई
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया एक दिन का पत्नी प्रेम सबके दिल में ले रहा, पत्नी प्रेम हिलोर। शक
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया नालायक जो देश को, गुटका करता पेश उसे महानायक कहे, पूजे सारा देश पूजे