डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया जैसे ही लेते चरस, गिरी किसी पर गाज बोने चरस समाज में, निकले नेता

डीपी सिंह की रचनाएं

सामयिकी देश जलाने वालों से तो त्रस्त हुई अब जनता है आज यहाँ कल वहाँ,

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलियाँ फ़सलें बो कर द्वेष की, रहे रक्त से सींच खालें ओढ़ किसान की, बैठे

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया कांग्रेस पर है “राहु” की, वक्री दशा विशेष “सिंह” राशि में कर गये, “गुरु”

डीपी सिंह की रचनाएं

स्वार्थ का हिमखण्ड गलना चाहिये सत्य, लावा-सा निकलना चाहिये स्वार्थ का हिमखण्ड गलना चाहिये कब

डीपी सिंह की रचनाएं

सावधान… लगें करने जो बातें अम्न की तुमसे दमन वाले सिमटने कुण्डली में जब लगें

डीपी सिंह की रचनाएं

पंजाब स्पेशल निगाहें कहीं पर, कहीं पर निशाना चवन्नी दिखा कर है बटुआ उड़ाना इसाई

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डीपी सिंह की रचनाएं

प्यार बस चाहत नहीं, कुछ और है प्यार तो परमात्मा का ठौर है फूल-कलियाँ हैं,

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया पहनोगी बुर्का अगर, तो मारेगा चीन बिन पहने मारे वहीं, तालिबान का दीन तालिबान

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया दाना फेंका मुफ़्त का, और जाति का जाल चुगने में हम व्यस्त हैं, हो