डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया दाना फेंका मुफ़्त का, और जाति का जाल चुगने में हम व्यस्त हैं, हो

डीपी सिंह की रचनाएं

चिट्ठी गाँव गली की ख़ुशबू लेकर, जब भी चिट्ठी आती थी बाबू अम्माँ गइया बछिया,

डीपी सिंह की रचनाएँ

हिन्दी माँ है, इसकी महिमा, मुख से अपने गाएँ क्या? ये है दिन का चढ़ता

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया हाथ-हथौड़ी साथ में, करने बैठे डील दिल में इनके है चुभी, “हिन्दुत्वा” की कील

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया जनता – मोदी का हुआ, है ऐसा अब हाल आवश्यक था ज्यों कभी, विक्रम

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया बर्बादी की क्षीर के, अगर न सहनी पीर या तो जामन डाल लो, या

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया जग में है इक क़ौम जो, करती “गन” की बात स्वांग करे डर का

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया दे दो सत्तर साल तक, आरक्षण की भीख या संरक्षण में उन्हें, बीस बरस

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डीपी सिंह की रचनाएं

पहचान कौन… मफलर, चप्पल और इक, नीली वैगन-आर बारह चेहरे पर बजे, पहने शर्ट उधार

डीपी सिंह की रचनाएं : जय श्री कृष्ण

जय श्री कृष्ण विश्व रूप अखण्ड मुख में, माँ जसोमति अस लखै। तेज पुञ्ज प्रचण्ड