डीपी सिंह की रचनाएं
कब तांडव की बारी है? हे शिव शम्भो! राष्ट्र आपका, आज बहुत आभारी है कृपा
डीपी सिंह की रचनाएं
।।विपक्ष की परिभाषा।। हंगामा हो रक्त में, व्यवधानों में दक्ष। मिथ्याचारी हों निपुण, कहते उसे
डीपी सिंह की रचनाएं
मौसमी दोहे मौसम तो नेपथ्य से, रचता साज़िश मात्र। बादल, बारिश, कोहरा, बनें मञ्च के
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया गाली दें हिन्दुत्व को, निसि-दिन आठो याम तिलक लगाकर अब वही, घूमें चारो धाम
डीपी सिंह की रचनाएं
चुनाव विशेषांक-4 बाबाजी हुंकार भरें, यूपी में फिर से आना है बबुआ की हर हरकत
डीपी सिंह की रचनाएं
।।कुण्डलिया।। आना पाई जोड़कर, कैसे बने करोड़ आज तलक इस बात का, निकला नहीं निचोड़
डीपी सिंह की रचनाएं
असल सियासत अजी सियासी पार्टियाँ, यूँ ही हैं बदनाम असल सियासत खेलना, है एस सी
डीपी सिंह की रचनाएं
चुनाव विशेषांक-3 भड़के-भड़के फिर रहे, बड़के भाई जान मुस्लिम एका का करें, जारी नित फ़रमान
डीपी सिंह की रचनाएं
यूपी चुनाव विशेषांक-2 आनी थी परियोजना, ऐसी एक विचित्र टोंटी से हर गेह में, टप
डीपी सिंह की रचनाएं
यूपी के मैदान में, होगी किसकी धाक इक दादी-सी दूसरी, है इनस्विंगर नाक है इनस्विंगर