डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया भारी दुविधा में फँसे, सोच सोच श्रीमान। मधुशाला के वास्तु का, कौन करे निर्मान।।
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया कितना बड़ा मज़ाक है, सोचो! करो विचार फ्लाई ओवर पर उगी, रातों रात मजार
डीपी सिंह की रचनाएं
कुण्डलिया अपनी ऊँची जात पर, जिनको था अभिमान छोटे बन कर छेड़ते, आरक्षण की तान
डीपी सिंह की रचनाएं
जाने किसने कह दिया, हुआ कहाँ से भान देखो देखो ले गया, कौवा तेरा कान
डीपी सिंह की रचनाएं
*मौसमी कुण्डलिया* मादा मच्छर का गणित, होय बहुत ही भिन्न। भिन्न भिन्न कर भिन्न विधि,
डीपी सिंह की रचनाएं
अङ्ग-प्रदर्शन की मची, बालाओं में होड़ पर गिद्धों की आँत की, दिखती नहीं मरोड़ दिखती
डीपी सिंह की रचनाएं
बदली ऋतु, मौसम हुआ, जैसे ही अनुकूल टर्र टर्र टों ट्वीट से, गूँजे सरवर कूल
डीपी सिंह की रचनाएं
सेकुलर एजेंडा अब्दुल ही मी-लॉर्ड है, बात भले है हार्ड त्योहारों पर खेलते, ख़ूब सेकुलर
डीपी सिंह की रचनाएं
धूलि जिस पद की पाषाण को तार दे जग को निर्वाण पद-नख की जल-धार दे
डीपी सिंह की रचनाएं : सीबीआई दफ़्तर में आग
*सीबीआई दफ़्तर में आग* सीबीआई कर रही, बड़े बड़ों की जाँच बहुतों की दहलीज तक,