डीपी सिंह की रचनाएं

*मौसमी कुण्डलिया*

मादा मच्छर का गणित, होय बहुत ही भिन्न।
भिन्न भिन्न कर भिन्न विधि, करे सभी को खिन्न।।
करे सभी को खिन्न, जिन्न डेंगू का डारे।
करे खाज खुजलाय, व्यक्ति ख़ुद थप्पड़ मारे।।
कह डीपी कविराय, सताए इतना ज्यादा।
बिन शादी ही खून, चूस ले मच्छर मादा।।

मच्छर पहुँचे कोर्ट में, करने लगे बवाल।
अपनी नाइट गुड करें, हमको आउट आल।।
हमको आउट आल, करें हिट, हमको मारें।
रखें स्वच्छता आप, हमारा गाँव उजारें।।
“रक्त चूसना धर्म”, लिए हाथों में बैनर।
जन्मसिद्ध अधिकार, माँगने पहुँचे मच्छर।।

डी पी सिंह

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