अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता : फागुन की पुरवाई

।।फागुन की पुरवाई।। अशोक वर्मा “हमदर्द” यौवन छाया आम पर, डाली-डाली झूम, फागुन आया गाँव

अशोक वर्मा “हमदर्द” की रचना- बिछुड़न : अधूरी मोहब्बत

अशोक वर्मा “हमदर्द” की लेखनी से निकलती मोहब्बत की आखिरी दास्तां कोलकाता। आलोक की जिंदगी

डॉ. आर.बी. दास की रचना

जिंदगी में आधा दुःख गलत लोगों से “उम्मीद” रखने से आता है, और बाकी का

श्री गोपाल मिश्र की रचना : विद्रोह की पूर्व संध्या

।।विद्रोह की पूर्व संध्या।। जरा देख लो मेरे जां-नशीं, ऐ हिंद के सुल्तान बामुलाहिजा होशियार!

श्री गोपाल मिश्र की रचना : यत्र नार्यस्तु पूज्यंते

।।यत्र नार्यस्तु पूज्यंते।। उष्ण तप्त दोपहर है, लड़कियों की जिंदगी। कंकड़ीली इक डगर है, लड़कियों

डॉ. आर.बी. दास की रचना

मंजिलों का इंतजार नहीं, सफर का मजा लीजिए, हर गुजरते पल के साथ, खुद को

अशोक वर्मा “हमदर्द” की एक और मार्मिक कहानी- बिछुड़न 

कोलकाता। सालों बाद जब आलोक अपनी अधूरी मोहब्बत की यादों में गुम था, उसे एक

श्री गोपाल मिश्र की नुक्ता : गुरबत इक रोज

।।गुरबत इक रोज।। लिखने बैठा जो गरीबी का ग्लैमर तो देखा, कलम की रवानी में

डॉ. आर.बी. दास की रचना

जिंदगी में कामयाबी, हाथों की लकीरों से नहीं, मेहनत के पसीना से मिलती है। कामयाब

श्री गोपाल मिश्र की रचना : अध्यात्म में प्रदूषण

।।अध्यात्म में प्रदूषण।। इच्छा नहीं इंसान की, ईश्वर तक पहुंचने की बस औपचारिकता वश, वह