राजीव कुमार झा की कविता : महफिल

।।महफिल।।
राजीव कुमार झा

नदी के किनारे
प्यार का आंचल
लहराता
नीला आकाश
तुम्हारे कदमों में
गिरता नजर आता
प्यार का पताका
नवरात्रि का त्योहार
वसंत को पहनाए
मौसम फूलों का
हार
हवा मस्त मगन
बहती
गीत गाये
खेत खलिहानों से
घर आंगन गलियों में
चली आये
सुबह धूप दरवाजे पर
बैठी
जिंदगी की
जीत-हार से दूर
रात सपनों की
महफ़िल में
नख शिख सजी
सुबह में ठंडी हवा
मुस्कुराती आ गयी

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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