डीपी सिंह की रचनाएं…

महाराणा के प्रताप का न झेल पाये ताप मुगलों के बार-बार मुँह काले हो गये

सौमेन रॉय की रचना : आस्था

।।आस्था।। वो क्या जाने तुम्हारी कीमत तुम तो हो अनमोल कीमती हो जानते हैं वह

डीपी सिंह की रचनाएं…

।।आह्वान।। सभ्यता प्राचीनतम, संस्कृति का परचम लहराता जग में हमारा हिन्दुस्थान है हिमगिरि ताज है

डीपी सिंह की रचनाएं…

।।माँ।। सोच रहा हूँ, खोज करूँ इक ऐसे वाई-फ़ाई की एसी में जो ठण्डक ला

राजीव कुमार झा की कविता : गुलमोहर

।।गुलमोहर।। राजीव कुमार झा धूप में कितने रंगबिरंगे फूल खिल उठे हैं! गुलमोहर की डालियों

डीपी सिंह की रचनाएं

जन्म मिलता है हमें जैसा है प्रारब्ध किन्तु मन वाणी गुण कर्म प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं

गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा की रचना : जिद्दी बनो

।।जिद्दी बनो।। गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा देश की परिस्थिति ऐसे हो गए है अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे

प्रतिभा जैन की रचना : विदाई

।।विदाई।। बेटी आज पराई हो चली मेरी नन्ही सी कली आज महक छोड़ चली खेल-खेल

कहता है श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ – शब्दों का शुक्रगुजार हूं मैं

।।शब्दों का शुक्रगुजार हूं मैं।। कभी कभी मुझे ये खयाल आता है कि… किंचित ही

डीपी सिंह की रचनाएं…

बात बात में (मनहरण घनाक्षरी छन्द) बात जो निकलती है, दूर तक जाती है वो