राजीव कुमार झा की कविता : गुलमोहर

।।गुलमोहर।।
राजीव कुमार झा

धूप में कितने
रंगबिरंगे फूल खिल
उठे हैं!
गुलमोहर की
डालियों पर
आकाश अनन्त
खुशियों को समेटे
सुबह की लालिमा से
सराबोर होकर
दिनभर
अमलतास को
देखता रहता है
बैसाख की दोपहर में
हवा खामोश
होती जा रही है
शाम के सन्नाटे में
मीठी हवा का
झोंका
जिंदगी की
आहट को लेकर
आता
सबकी उदासी
खत्म हो जाती
बेमौसम की
बारिश में
गुलमोहर की
छाया
पानी से
भीग गयी है
आम के बगीचों में
फिर धूप
निकल आयी है
लोगों का आना-जाना
शुरू हो गया है!

rajiv jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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