डीपी सिंह की रचना : जय श्री हनुमान!
जय श्री हनुमान! आप बल-बुद्धि की, शील की खान हैं आप चाहें तो सब काम
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।।राज-धर्म।। जिनके कुकृत्य ख़ुद चीख चीख बोलते हैं पार्टियाँ ही वही राजनीति भी सिखाती हैं
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बालकों को कूल डूड, बालिकाएँ हॉफ न्यूड सेक्सी हॉट जैसे व्यवहार न सिखाइये दीपिका करीना
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।।परिवर्तन।। (1) पहले तो सरकारें बनती बिगड़ती थीं प्याज वाले आँसुओं के भाव के बहाव
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टीवी पॅ ख़बर चली, बात सबको ये खली अब कोई नज़रों का तारा ही नहीं
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माथे पे मयूर पंख, होठों पे मुरलिया है मृग-सा सरल तन, मन है मृगेन्द्र का
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काशी बोले बम बम डमरू की डम डम हर ओर हर हर की ही ध्वनि
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।।जय श्री राम।। बिगड़े बनेंगे काम आइये अवध धाम जहाँ राम-नाम मय अनमोल थाती है
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जनता को भरमाया, शिक्षा-नीति ने चढ़ाया भारत के युवाओं को नौकरी के झाड़ पे जोड़
डीपी सिंह की रचनाएं…
राजनीति क्षेत्र-जाति से है प्रीति, बिगड़ी है राजनीति राज बचा और नीति तार तार हो