डीपी सिंह की रचनाएं
आज़ादी का स्वप्न दिखाकर काम किया नादानी का ठगते रहे ओढ़कर चोला अब तक वो
डीपी सिंह की रचनाएं
मक्खी मच्छर वाइरस, बारिश में सुख पायँ दरवाजे खिड़की सभी, फूले नहीं समायँ फूले नहीं
डीपी सिंह की रचनाएं
मद्य घोटाले की चर्चा आम जन में क्या गई शह्र के मालिक की सूरत जाने
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया एकलव्य ने कलयुगी, साध लिया तूणीर और मीडिया-मुख भरे, विज्ञापन के तीर विज्ञापन के
डीपी सिंह की रचनाएं
जय श्री कृष्ण माथे पे मयूर पंख, होठों पे मुरलिया है मृग-सा सरल तन, मन
डीपी सिंह की रचनाएं
हँसी तो द्रौपदी की कौरवों का बस बहाना था उन्हें नामो-निशां ही पाण्डु- पुत्रों का
डीपी सिंह की रचनाएं
ज़ुबां कड़वी है, मीठी, तो कभी अनमोल मोती है ये जब मुँह में नहीं होती,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।कुण्डलिया।। पानी की फिर कब मिले, पता नहीं इक घूँट पीता कुछ, कुछ “डील” में,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।कुण्डलिया।। ऑक्सीजन हो या दवा, हस्पताल शमशान। सबका रोना रो रहा, बेमतलब इंसान।। बेमतलब इंसान,
डीपी सिंह की रचनाएं
आज तलक जो घिरे रहे हैं सदा कागजी शेरों से, सिंहों की मुद्रा पर अब