डीपी सिंह की रचनाएं

जय श्री कृष्ण

माथे पे मयूर पंख, होठों पे मुरलिया है
मृग-सा सरल तन, मन है मृगेन्द्र का

पालने में पूत पूतना को मार डालता है
अभिमान करे ध्वंस कंस के गजेन्द्र का

नन्दलाल ग्वाल-बाल संग यमुना के तीर
खेल-खेल में ही फन नाथता नागेन्द्र का

एक उँगली पे उठा लेता है गोवर्धन को
दर्प चूर करना हो जब भी देवेन्द्र का

— डीपी सिंह

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