डीपी सिंह की रचनाएं

आज तलक जो घिरे रहे हैं सदा कागजी शेरों से,
सिंहों की मुद्रा पर अब वो हैं नाराज़ चितेरों से।
(चितेरों – चित्रकारों)

दाँत सिंह के गिनते थे, उनका इतिहास मिटा डाला,
याद रखा औरंगज़ेब को, भूले राणा का भाला।

फूटी आँख भला भाते हैं उनको साधू सन्त कहाँ,
रास उन्हें आया करते हैं शेरों के नख दन्त कहाँ।

दस वर्षों तक सिंहासन पर गूँगा सिंह बिठाया था,
और भेड़ियों को वन का हर संसाधन दिलवाया था।

था पसन्द आदमखोरों को ख़ून ग़रीबों का पीना,
पच्चासी पैसे खा कर भी ठण्डा हुआ नहीं सीना।

भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, हैं जिनके पर्याय बने,
देशद्रोह के कृत्यों से हैं हरदम इनके हाथ सने।

ख़ुद बिरयानी छक कर खाई, हड्डी जिनको थी डाली,
सिस्टम वही किया करता है अब भी इनकी रखवाली।

आतंकी घटना होने पर चादर ताने सोते थे,
पर उनके मारे जाने पर रात रात भर रोते थे।

हरदम रहते हैं इनके तो कुर्सी पर ही नैन गड़े,
अब इनके दिन चले गये तो देश जलाने निकल पड़े।

डीपी सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *