डीपी सिंह की रचनाएं

तिथि पूछते थे नित्य नवल प्रासाद पे जो, हो गये समाप्त ये सवाल नये साल

डीपी सिंह की रचनाएं

मद का कचरा बेच दिया है, मन का कमरा खाली है और विचारों के दर्पण

डीपी सिंह की रचनाएं

गन्दी सियासत का दोषी कौन? कैसे कह दें, नेताओं में हम आदर्श नहीं पाते काश!

डीपी सिंह की रचनाएं

क्यों नहीं सनातन के विरुद्ध यलगार सुनाई देती है, क्यों नहीं कालिया नागों की फुफकार

डीपी सिंह की रचनाएं

।।आओ! भारत बन्द कराएँ।।  डी पी सिंह शान्ति, विकास, प्रगति से खेलें, जाति धर्म का

डीपी सिंह की रचना : भारत के भविष्य की बात

।।भारत के भविष्य की बात।। डीपी सिंह मिथ्याचारी, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी, सब साथ खड़े चौकीदार एक

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया किसके सीने पर लगा, कितना गहरा घाव धर्म लिंग गृह जाति से, तय करते

डीपी सिंह की कुण्डलिया

।।कुण्डलिया।। बिल्ली मौसी के गले, घण्टी बाँधे कौन मीटिंग होती रोज़; पर, चूहे रहते मौन

डीपी सिंह की रचनाएं

सर छुपाने को भी जर-जमीं चाहिये भाव हों अंकुरित, तर-जमीं चाहिये चाह है तुझ पॅ

डीपी सिंह की रचनाएं

प्रश्न है हर तरफ, जो निराधार है वंश का क्यों पिता से जुड़ा तार है,