डीपी सिंह की रचनाएं

 ।।राज-धर्म।।

जिनके कुकृत्य ख़ुद चीख चीख बोलते हैं
पार्टियाँ ही वही राजनीति भी सिखाती हैं

राज की न कोई नीति, राज ही है बस नीति
राज़ ये वो जनता को कब बतलाती हैं

नौ सौ चूहे खा के हज कर के जो आईं अभी
बिल्लियाँ वो मर्म धर्म का हमें सिखाती हैं

सूप जो हँसे तो हँसे, छलनियाँ हँस के तो
अपने ही छेदों की वो हँसी उड़वाती हैं

–डीपी सिंह

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