बेचैन कलम : मन न पाए ठहराव…
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । मन स्थिर कैसे हो सकता है! जो एक है
गुरु बनने से शिष्य बनना अधिक महत्वपूर्ण
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । युग परिवर्तन केवल जल प्रलय से नहीं होता। युद्ध
जो दिखता है वैसा होता नहीं…
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । ‘लिखना’ और वैसा ‘होना’ दो अलग बातें हो सकती
खुशी की उम्र चार दिन
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । खुशी की उम्र चार दिन की होती है, नकली
सुंदरता : प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । सुंदर हर कोई है पर मनुष्य जाति का दिमाग
फिर याद आ ही गए न तुम_
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” । फिर याद आ ही गए न तुम — निराश जीवन
परिश्रम दिवस…
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”, लखनऊ । कभी क्रान्ति नहीं करता। वह सपनों की भ्रान्ति नहीं
हिन्दी की दशा एवं दिशा
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” । हिंदी का प्रयोग करना चाहिए — यह राजनीतिज्ञों और अधिकारियों
प्रफुल्ल का अनिश्चितता सिद्धांत
आज हम प्रफुल्ल सिंह के अनिश्चितता के सिद्धांत को सिद्ध करते हुए उस अनिश्चितता में
सीखने की ललक
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” । उच्चकोटि की समझ पाने व इसे विकसित करने के लिए
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