डीपी सिंह की रचनाएं

प्रश्न है हर तरफ, जो निराधार है वंश का क्यों पिता से जुड़ा तार है,

भावनानी के भाव : नया संसद भवन लोकतंत्र का मंदिर

।।नया संसद भवन लोकतंत्र का मंदिर।। किशन सनमुखदास भावनानी ग्रामसभा, विधानसभा, सांसद लोकतंत्र के मंदिर

डीपी सिंह की रचनाएं

जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते रह गए वो वतन छाँटते-काटते बाँटते जातियों में किसी वर्ग

डीपी सिंह की रचनाएं

यह गहन मौन में जो निहित नाद है आत्म-परमात्म के बीच संवाद है राम मय

डीपी सिंह की रचनाएं

अब तो कागा भी सन्देश लाते नहीं और कबूतर भी चिट्ठी ले जाते नहीं याद

भावनानी के भाव : प्राचीन संस्कृति का युवाओं में प्रसार करना है

।।प्राचीन संस्कृति का युवाओं में प्रसार करना है।। किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र प्राचीन संस्कृति

डीपी सिंह की रचनाएं

पीढ़ियों के त्याग-तप का फल भगीरथ को मिले तब सफलता देवसरि के अवतरण-पथ को मिले

डीपी सिंह की रचनाएं

कालाबाजारी अगर, करनी होती बन्द। देते सूली पर चढ़ा, भ्रष्टाचारी चन्द।। भ्रष्टाचारी चन्द, किन्तु अन्याय

डीपी सिंह की रचनाएं

उसने सोचा, छेड़-छाड़ का समाधान वो पायेगा परीजान के बदले पत्नी पहलवान यदि लायेगा लेकिन

भावनानी के भाव : मां की ममता

।।मां की ममता।। किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र मां की ममता मिलती है सब को