डीपी सिंह की कुण्डलिया

।।कुण्डलिया।। ऑक्सीजन हो या दवा, हस्पताल शमशान। सबका रोना रो रहा, बेमतलब इंसान।। बेमतलब इंसान,

डीपी सिंह की रचनाएं

आज तलक जो घिरे रहे हैं सदा कागजी शेरों से, सिंहों की मुद्रा पर अब

डीपी सिंह की रचनाएं

सौदा छोड़ कर तरुवर, लता, वन-बाग, उपवन, मञ्जरी गाँव की ताज़ा हवा, चौपाल, घर की

डीपी सिंह की रचनाएं

 ।।महाराष्ट्र स्पेशल।। लालच में तो जयचन्द बने, बेच दी हया अब नाम नगर का है

डीपी सिंह की रचनाएं

पूरा घर-परिवार जहाँ खोया था जग की माया में पालन सृजन सुरक्षा सबको मिली वहाँ

डीपी सिंह की कुण्डलिया

निसि दिन माया-योग से, लगते नाना रोग वहीं रोग के भोग से, मुक्त कराता योग

डीपी सिंह की रचनाएं

हम तो जनसंख्या अपनी घटाते रहे और वो लश्कर पॅ लश्कर बनाते रहे धूर्त सत्ता

डी.पी. सिंह की रचनाएं

घर का दायित्व, कमज़ोर होने न दे कष्ट हो, पर पिता को वो रोने न

डी.पी. सिंह की रचनाएं

विपक्ष चरितम् आओ! भारत बन्द कराएँ शान्ति, विकास, प्रगति से खेलें, जाति धर्म का ज़हर

डी.पी. सिंह की रचनाएं

धर्म-निरपेक्षता के सिरे पर खड़े कैसे ज़िद पर अड़े हैं ये चिकने घड़े मालिकी की