राजीव कुमार झा की कविता : उसी प्रेम को लेकर

।।उसी प्रेम को लेकर।।
राजीव कुमार झा

जो चेहरा अब
चुप्पी की
दीवारों के पीछे हंसता
प्रियवर! सबका मन
आज वहां पर
बेहद सुख से रहता
नदी का पानी
गर्मी में भी बहता
जिसके मन में
जो भी है
अब कहां कभी
उसके बारे में
कोई कुछ भी कहता
सूरज रोज निकलता
मातम की बेला में
बैठा राही
नदी किनारे आकर
कभी ठिठकता
छूट गया हो
मानो कोई घर में
यहां आज भी
कोई रहता हो
उसी प्रेम को लेकर
कविता कहती
हवा उसी प्रेम को
लेकर बहती
चुप होकर कुछ कहती
किसी शाम में
शायद घर आओगे

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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