
माँ तुम प्रेरणा हो जीवन की,
तुम ज्योति हो अंधकार मन की,
तुम आशा हो निराश मन की,
तुम ऊर्जा हो माँ,
निष्प्राण मन की,
वर्षा हो, अंबर में छाए चिंतन रूपी घन की
तुम सकारात्मक एहसास हो व्यथित मन की
“माँ”… एक ही शब्द है,
एक में ही सर्वस्व, ये पूरा ब्रह्माण्ड विश्व
जग की सृष्टि करने वाली
क्रंदन में वंदन करने वाली।
दुख: में पुलकित करने वाली
शुष्क उपवन में वसंत लाने वाली
शुष्क उपवन में वसंत लाने वाली
ग्रीष्म में शीतल मन्द हर्षित पवन बिखेरने वाली
बंजर भूमि में ममतामयी रस सींचने वाली
तू रग रग में विराजमान मेरे
मेरी भाषा संस्कृति में संस्कार तेरे
ये सम्पूर्ण जगत विश्व करता माते
झुक कर सत् सत् प्रणाम तेरे 🙏🙏…..
-रूम्पा कुमारी साव ✍🏻
कोलकाता, (पश्चिम बंगाल)

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