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मिल जाए गुरु की चरण, मिटे वक्ष के पीर । आए प्रभु आपके शरण, व्याकुल
सपने लिए आँखों मे आ गया इक शहर में ढूंढता रहा जिंदगी जी रहा हूँ
।।गोरखा।। गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा सीमाओं की रक्षक है गोरखा दुश्मनों के दुश्मन हैं गोरखा,
सौदा छोड़ कर तरुवर, लता, वन-बाग, उपवन, मञ्जरी गाँव की ताज़ा हवा, चौपाल, घर की
।।गम से कैसा नाता है।। वक्त बेवक्त वो शख्स यूं ही नहीं गाता है दर्द
।।महाराष्ट्र स्पेशल।। लालच में तो जयचन्द बने, बेच दी हया अब नाम नगर का है
पूरा घर-परिवार जहाँ खोया था जग की माया में पालन सृजन सुरक्षा सबको मिली वहाँ
।।मेरे देश की कुर्सी।। आजकल मेरे देश की कुर्सी थरती से भी अधिक उपजाऊ हो
।।एक सुबह तू आया था।। एक सुबह तू आया था हर शाम तुझमे समाया था
।।पूर्णिका।। ऐसी कैसी दोस्ती निभाता है तू। सामने आने से घबराता है तूं।। माना तेरी