
।।पूर्णिका।।
ऐसी कैसी दोस्ती निभाता है तू।
सामने आने से घबराता है तूं।।
माना तेरी पहुंच नही वहा तक।
जिसके सपने दिखाता रहा है तूं।।
वो करते रहे तुझसे दुश्मनी सदा।
क्यों उनसे अपनत्व जताता है तूं।।
उसे पाने के सपने सच न होगे।
बेवजह उन पर धन लुटाता है तूं।।
वो हंसकर करते जाते टाल मटोल।
जबकि उसे अपना ही बताता है तूं।।
बहुत सुंदर और ऊंची रकम है वो।
जिस पर मनोहर दाव लगाता है तूं।।

कवि मनोहर सिंह चौहान मधुकर
जावरा, जिला रतलाम, मध्य प्रदेश
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