डीपी सिंह की रचनाएं

जिसकी इच्छा से ही सुब्ह और शाम हो इक पता जानने में वो नाकाम हो

गोपाल नेवार, ‘गणेश’  सलुवा की कविता : इंसान बदल गया

।।इंसान बदल गया।। गोपाल नेवार, ‘गणेश’  सलुवा वो भी एक जमाना था ये भी एक

सुधीर सिंह की रचनाएं

लौट आया मेरा बचपन अब इस बुढ़ापे में खेल रहा हूँ बच्चों संग अब इस

राजीव कुमार झा की कविता : सांझ की वेला

।।सांझ की वेला।। राजीव कुमार झा अरी सुंदरी! बीत गयी!! सोलह साल की, अल्हड़ उमरिया!

डीपी सिंह की रचनाएं

मत घबराओ, दूर अँधेरे होते हैं हर रजनी के बाद सवेरे होते हैं जब भास्कर

राजीव कुमार झा की कविता : मधुमास

।।मधुमास।। राजीव कुमार झा वसंत ऋतु! सर्दी – गर्मी बीत गया। आकाश का रूप नया!

सुधीर सिंह की कविता

।।सुधीर सिंह की कविता।। जिसने भी चाहा तुझे सब वो बेकार हो गए। कुछ बन

राजीव कुमार झा की कविता : वसंत का गीत

।।वसंत का गीत।। राजीव कुमार झा सागर का एकांत किनारा उग आया संध्या का तारा

डीपी सिंह की रचनाएं

दो कोल्हू के पाट हैं, इक ईडी इक जेल आयेगा बाज़ार में, जल्द नवाबी तेल

श्याम कुँवर भारती की कविता : ‘अपना वतन चाहिए’

हिन्दी गीत – ।।अपना वतन चाहिए।। श्याम कुँवर भारती न शोहरत न दौलत मुझे अपना