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।।वसंत का आंगन।।
राजीव कुमार झा
वसंत की हवा
सुबह में आयी
वह धूप में
बदल गयी
तुम्हारी मुस्कान
यह जिंदगी
सुहानी शाम
झुरमुट में
टिटहरी बोल रही
सबके कानों में
मिसरी का रस
घोल रही
अरी सुंदरी!
सारी रात
दसों दिशाएं खामोश
खड़ी
यह मन की
रोशनी
अब कहीं अकेली
चांद को देखकर
डर गयी
सुबह सूरज की
किरणों में
तुम नदी सी
कलकल बह रही
कलियां खुशी से
खिलकर
बाग बगीचों में
महकने लगीं
प्रेम से भरी
दपहरी गीत गा रही
गांव के बाहर
झुरमुट में
झरबेरियां रसभरी
मेले में बाजार आयीं
औरतें
वापस गांव चल पड़ीं
फसल के
खेतों के किनारे
सुनसान राहों में
बातें करती रहीं
तालाब के पास
पुराने मंदिर में
दीये की लौ सुलग
पड़ी
तुम्हारी यादों का
सावन
वसंत का आंगन
नीले आकाश का
किनारा
समुद्र की लहरों में
डूबता उतराता
सुबह कोई
डूबता तारा
यह घर हमारा
नदी का किनारा
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