राजीव कुमार झा की कविता : मुहब्बत की कसम

।।मुहब्बत की कसम।।
राजीव कुमार झा

सुनकर हंसी आती
अपने वायदों के बारे में
सोचकर
तुम मुस्कुराती
अक्सर सबसे फरेब
करते
तुमसे प्यार करते
जाल में
उस दिन जो फंसकर
अकेले हो गए
उनकी मुहब्बत
याद आती
तुम कहीं खिलखिलाती
नदी की तरह बहती
यहां रातें बिताती
सुबह बहुत पास
आकर
शाम में दूर हो जाती
कोलाहल में
समय का खोया नजारा
चांद का रुपहला चेहरा
सबके मन का सितारा

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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