।।प्रेम ही जीवन है।।
राजीव कुमार झा
धरती पर प्रेम
फूल की तरह सर्वत्र
खिलता
चांद के चेहरे पर
अपनी रोशनी से
उसके दाग को
मिटाता
नदी को जंगल में
रास्ता दिखाता
प्रेम बारिश के
फुहार की तरह
वसंत के अंतिम दिनों में
पेड़ों की हरी भरी
टहनियों पर
नये पत्तों की तरह
हर मौसम में
उगता रहता
इसके बारे में
नदी का पानी
कलकल बहता
सागर को सबकुछ
कहता रहता
कहां प्रेम से
कोई बचता
आदमी इसके आगे
जो भी होता
उसको सहता
युद्धक्षेत्र से लेकर
यमुना तट पर
वंशी लेकर बैठा रहता
किसी से कभी नहीं
बिछुड़ता
प्रेम से भरा हिमालय
रोज पिघलता
गंगा-यमुना की धारा में
बहता