राजीव कुमार झा की कविता : सुनहरे पहाड़

।।सुनहले पहाड़।।
राजीव कुमार झा

अनकही बातें हमारी
जिंदगी का एक पल
तुमने चुराया
याद आती चांदनी
रातरानी की
डालियों पर
बिखरी हवा के
संग अकेले
जिंदगी के मेले
शाम की
चहल पहल से
पहले
दुपहरी में गूंजते
बोल मन के
अरी सुंदरी
आकाश सितारों से
भरा
मन के थाल में
जलती हुई लौ
यौवन की आंच में
गुनगुनी धूप छाई
तुम सुबह
तब आंगन में
निकल कर आयी
नदी के किनारे
धरती का आंचल
सुनहरा
हीरे जवाहरातों से
दमकते
सुनहले पहाड़
सागर के किनारे
सुबह की
लहरों में समायी
धूप
सावन की शाम में
तुम खिलखिलाकर
चल पड़ी हो
अकेली
आगे अनमनी सी
रात घिरती आ गयी

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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