राजीव कुमार झा की कविता : गुमनाम

।।गुमनाम।।
राजीव कुमार झा

ग्रीष्म का मौसम
तुम्हें अपने ताप से
दिनभर बेहाल करता
बहते पसीने से
दुपहरी तरबतर होती
रात में
तुम एयरकंडीशंड
कमरे में तकिए पर
माथा रखकर चैन से
सोती
नींद तुम्हारे पांवों को
दबाती
सपनों में प्यार के
गुमनाम चिट्ठियों की
याद आती
प्यार करने की
उम्र बीत जाती
संध्या सुंदरी की याद
सबको आती
खूब मीठा हो गया
मन की गहरी
झील का पानी
सबकी यादों में बसी
तुम्हारी बीती जवानी
बेहद सुंदर
आज भी लगती
जब कभी अकेली
किसी से प्यार की
बातें किया करती

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 + seventeen =