डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।जातिवाद का जह्र।। डीपी सिंह क्यों करनी है जातिगत, जनगणना श्रीमान? लागू करना है यहाँ,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया खादी कुर्ता है धवल, नई नवेली कार चाटुकार हैं सङ्ग में, आगे पीछे चार
डीपी सिंह की रचनाएं
ज़ुबां कड़वी है, मीठी, तो कभी अनमोल मोती है ये जब मुँह में नहीं होती,
डीपी सिंह की कुण्डलिया
।।कुण्डलिया।। ऑक्सीजन हो या दवा, हस्पताल शमशान। सबका रोना रो रहा, बेमतलब इंसान।। बेमतलब इंसान,
डीपी सिंह की रचनाएं
(अ)न्यायपालिका काग़ज़ात देख के भी राम का न काम किया विधि भी न बच पाये
डीपी सिंह की रचनाएं
अभी चढ़ी तो नहीं है न! होलिका बिल्कुल न पीना, भाँग वाले दिन कभी गाल
डीपी सिंह की कुंडलियां
अक्सर मन्दिर-घाट पर, हर चुनाव के बीच रूप बदलकर घूमते, कालनेमि-मारीच कालनेमि-मारीच, जनेऊ पहन कोट
डीपी सिंह की रचनाएं
दो कोल्हू के पाट हैं, इक ईडी इक जेल आयेगा बाज़ार में, जल्द नवाबी तेल
डीपी सिंह की कुण्डलिया
पीएम पद पर बँट गया, सैंतालिस में देश दिल्ली के मालिक करें, वही नमूना पेश
डीपी सिंह की रचनाएं
सत्तर-अस्सी उम्र हो, पिचक रहे हों गाल फिर भी सोलह साल की, लड़की दिखती माल