सत्तर-अस्सी उम्र हो, पिचक रहे हों गाल
फिर भी सोलह साल की, लड़की दिखती माल
लड़की दिखती माल, जाल में उन्हें फँसाएँ
अपने मन में खोट, उन्हें बुर्का पहनाएँ
ख़ुद को इत्र-ख़िजाब, मरे पर हूर बहत्तर
उनके भाग्य हिजाब, मढ़ी पाबन्दी सत्तर
–डीपी सिंह
Shrestha Sharad Samman Awards