आपके करम भी आपके सितम ही हैं

आपने सत्ता हासिल करने को लाख बार झूठ बोला झूठे सपने दिखलाये वोट पाने को

कुछ कहना है खामोश हैं सभी

यूं तो महफ़िल सजी है कितनी रौनक नज़र आती है मगर हर कोई मिलता है

सोने-चांदी के कलम नहीं लिखेंगे आंसू की दास्तां ( गरीबी की पीड़ा ) 

जो लिखना चाहता हूं उस असहनीय दर्द की व्यथा कथा को लिखने को अश्कों का

कोरोना ज्ञान का संदेश है ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

शायद अभी नहीं पहचानोगे समझोगे तभी जानोगे कभी कोरोना की कथा लिखोगे उसका संदेश मानोगे।

आयुर्वेद की हक़ीक़त और धोखे-लूट का बाज़ार

मुझे ऐसे लोग गिद्ध से भी बुरे लगते हैं जो आपदा की दशा में भी

मदर्स डे स्पेशल :  डॉ. लोक सेतिया की कविता – “माँ के आंसू”

माँ के आंसू  कौन समझेगा तेरी उदासी तेरा यहाँ कोई नहीं है उलझनें हैं साथ

गधों का अखिल भारतीय सम्मेलन ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया

सभी गधे ख़ुशी से झूम रहे हैं गा रहे हैं , अपना  राग सुना रहे

समझ नहीं आती लगती खूबसूरत ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया 

आपने महाभारत सीरियल देखा या नहीं , कुछ देखते हैं कुछ नहीं देखते हैं जो

शोहरत का सर्वोच्च कीर्तिमान ( हास-परिहास ) : डॉ. लोक सेतिया 

हर वर्ष वो इक घोषित किया करते हैं सब से अधिक नाम शोहरत किस की

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