समझ नहीं आती लगती खूबसूरत ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया 

स्वतंत्र लेखक और चिंतक

आपने महाभारत सीरियल देखा या नहीं , कुछ देखते हैं कुछ नहीं देखते हैं जो देखते हैं जानते हैं जो नहीं देखते हैं समझते हैं। बात समझ आई आपको ये कोई उलझन नहीं है दो दिन से भगवान कृष्ण कुछ इसी तरह वचन सुना रहे हैं। जो बाहर ढूंढते हैं जो भीतर ढूंढते हैं जो खाते हैं जो खाते नहीं हैं जो जागते हैं जो जागते नहीं हैं जो सोते हैं जो सोते नहीं हैं।

कुछ भी नहीं छोड़ा सब की गिनती कर ली इधर भी उधर भी मगर आखिर में मैं ही मैं हूं मुझ पर विश्वास करो और जो भी कहता हूं करो। देखने सुनने वाले गदगद हैं क्या ऊंचे लेवल की बात कहते हैं। माफ़ करना मुझे लगा क्या कोई नहीं है जो जाता और अर्जुन कृष्ण से कहता भाई जो करने आये हो युद्ध का शंख बज चुका है अब इन बातों को करने का समय नहीं है। कहां धर्म युद्ध की बात और कहां कृष्ण कहते हैं मेरे बन जाओ सभी पाप क्षमा सभी अपराध माफ़। ये तो कोई सत्ताधारी विधायक सांसद को अपने दल में शामिल करते हुए कहता है। हम अपनी बात पर आते हैं।
      अर्जुन भी हैरान परेशान था और हम भी कृष्ण जी की बात को कब समझ सकते हैं ये भी वो भी दोनों सही भी दोनों गलत भी। सोचो अगर आज कोई देश किसी देश से जंग लड़ने मैदान से आकाश और समंदर में हथियार लिए खड़ा हो और वाहन चालक उसको लंबा उपदेश देकर खुद को सभी कुछ कहलाने की बात करे तो क्या होगा। कथा है और कथा लिखने वाला जब कहेगा कहानी बढ़ेगी अन्यथा रुक कर खड़ी रहेगी।  ये कोई नई कथा है जो कोई उपदेशक कभी ये कभी वो करने को कहता है और कोरोना से लड़ाई जब जीतेंगे तब जीतेंगे अभी ये ज़रूरी है।
विश्व में कोरोना से सभी परेशान हैं जनता घर में बैठ महभारत रामायण देख रही है। सरकार चिंतित है रोज़ कुछ न कुछ करती है , खुद भी कुछ करती है कोई नहीं जानता लगता है सब वही करती है। आदेश देती है नियम बनाती है और उसे लागू भी करती है। ताली बजवाती है दिया जलवाती है और हम जो हुक्म मेरे आका कहते हैं कि शायद कोई चमत्कार होने वाला है। कल तीनों सेनाओं ने बहुत कारनामे दिखाए और ये उनका आदर करना था जो डॉक्टर अस्पताल कोरोना के रोगियों का उपचार कर रहे हैं। ये अच्छी बात है मगर कब क्या किया जाये ये कोई नहीं जानता।
खुद डॉक्टर्स भी नहीं जानते जो रोगी गंभीर हालत में हैं उनको देखें या अस्पताल के बाहर उस समय का इंतज़ार करें जब फूलों की बारिश होगी। फिर सबको लगा सरकार कितना अच्छा काम कर रही है अब ये भी मुमकिन है सरकार का फरमान जारी हो इक दिन अपनी सरकार की भी जय जयकार करने को सबको कुछ करना है समय दिन और क्या उन्हीं को पता।
मुझे इक घटना याद आई है सच्ची है। अपनी डॉक्टर की पढ़ाई करते हुए एनॉटमी की इक किताब मुझे खरीदनी थी। तब तक वो किताब विदेश से आती थी पहली बार भारत में छपवाई हुई उपलब्ध थी ये इक विशेष अवसर था , मेरे साथ इक दोस्त था जो अब नहीं रहा है 2002 में ही उनका निधन हो गया था। आपको भी कभी ऐसी आदत रही होगी किसी को अपनी कॉपी किताब डायरी पर शुरुआत के पन्ने पर कुछ शुभकामना संदेश लिखने को कहने जैसी। और डॉ बी डी शर्मा ने तब जो लिखा आपको नहीं बताना चाहता क्योंकि बचपन में जिसे दोस्ती कहते हैं आजकल पागलपन समझा जाता है।
पूरी ईमानदारी से कहता हूं तब उस दिन मुझे उसकी बात रत्ती भर भी समझ नहीं आई थी , मगर ये भी सच है कि फिर भी मुझे उसकी लिखी बात बेहद खूबसूरत लगी थी। तब मुझे कविता लिखने का शौक था कविता ग़ज़ल कहानी को समझे बिना ही , और जो समझ नहीं आता वो लगता बड़ी महान बात है। तब अपनी डायरी पर मैंने भी लिख दिया था समझ पाया नहीं मगर लगती है खूबसूरत वो बात जो तुमने लिख दी थी मेरी किताब पर।
बचपन की पुरानी नासमझी की बातें याद करते हैं तो हंसी आती है। क्या सरकार जो भी कहती करती है उन बातों को उस तरह समझे बगैर वाह वाह क्या बात है का शोर मचा सकते हैं। ये कोई कवि सम्मेलन या मुशायरा नहीं है कि ताली नहीं बजाओगे तो सब समझेंगे आपको शेर का अर्थ कविता का मतलब नहीं समझ आया। और कितनी बार देखा है खुद शायर को कहना पड़ता है आपको वहां ताली नहीं बजानी चाहिए थी जब अपने खूब तालियां बजाईं और अब जब बजानी चाहिएं थी नहीं बजाईं। कभी सोचा कभी समझा ये जो हर दिन कुछ भी करने को कहते हैं उनको कभी जो बातें अनुचित लगती थीं खुद सत्ता मिली तो वही सब अच्छी लगने लगीं थी।
निराधार बात नहीं आधार की बात है मन की बात नहीं मनरेगा की बात है। मगर क्या कभी उन्होंने स्वीकार किया तब उन्होंने जो कहा था सही नहीं था। महान लोग जब भी जो कहते हैं तब वही सही और वास्तविक सत्य हो जाता है। पिछली बात को अपने इतिहास से मिटा देते हैं। ये उनका युग है उन्हीं का सिक्का चलेगा पुराने हज़ार के पांच सौ के नोट बेकार थे कालिख लगी थी उन पर तभी आते ही गुलाबी हरे भगवा नए नए रंगीन करंसी नोट जारी किये।
काला धन गुलाबी बन गया बस गांधी जी को रखना मज़बूरी थी क्योंकि गांधी जी विवशता और रिश्वत का दूसरा नाम बन गए थे। क्या किया क्यों किया कब किया ये सवाल उन पर कोई नहीं दाग़ सकता ये पिछले शासकों पर दाग़ने को सुरक्षित हैं उनके लिए।   बाकी कहना नहीं समझना ज़रूरी है समझ नहीं आये तो गीता को पढ़ने को नहीं शपथ उठाने को उपयोग करें।

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