डॉ लोक सेतिया की व्यंग्य कविता : आज हैं अपराधी बनेंगे कल नेता

“आज हैं अपराधी बनेंगे कल नेता” हर बात को देखने का होता है सबका अपना

एक संविधान एक भगवान एक विधान : डॉ. लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया : वो जो भी है किसी भी नाम से पुकारो एक ही है

मुश्किल चुप रहना, आसां नहीं कहना

उलझन डॉ. लोक सेतिया : लिखने का मकसद क्या है? सवाल पूछते हैं सभी दोस्त

अज्ञानता की गहरी खाई और भेड़चाल

सोचे समझे बिना अंधविश्वास डॉ. लोक सेतिया : सोशल मीडिया की दीवानगी कह सकते हैं

मैं कतरा हो के भी तूफ़ां से जंग लेता हूं (हास-परिहास)

विषय बदल गया है साल तक जिन कृषि कानूनों के फायदे समझा रहे थे अचानक

क्या ये गर्व-अभिमान की बात है (सच सिर्फ सच) डॉ. लोक सेतिया

क्या ये गर्व-अभिमान की बात है (सच सिर्फ सच) डॉ. लोक सेतिया : सभी लोगों

गठबंधन सरकार से विवाह संबंध तक (हंसते-हंसाते)

डॉ. लोक सेतिया : समझ का फेर है अन्यथा विधाता के निर्णय में होती कभी

ऊंचे पर्वत पर खड़े हुए बौने लोग

कुछ ऐसा ही लग रहा है जैसे कोई किसी की बड़ी रेखा को छोटा कर

बेअसर आंसू-आहें अनसुनी फ़रियाद (पढ़ना-लिखना)

कितनी बार वही सवाल मन में आता है बात तमाम चिंतन करने वालों की लिखने

किन बातों को अपनाना या छोड़ना (विरासत)

लगता है जैसे तमाम लोग मानते हैं कि हमारी सभी पुरानी ऐतहासिक धार्मिक किताबों की