विकास लापता सुरक्षा घायल ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया

जहां कहीं भी हो देश की व्यवस्था को तुम्हारी तलाश है। खोजने वाले को ईनाम

कभी खुद को भी देखो दर्पण में 

उसने क्या किया किस किस ने क्या किया सब की बात कहते हैं खुद तुमने

गणिका डाकू और सिपहसलार (व्यंग्य-कथा) : डॉ लोक सेतिया

जाने कितने आशिक़ थे उस के जो उसकी अदाओं पर फ़िदा थे। उसका नाच देखते

ढूंढो ढूंढो ढूंढो चौकीदारों को ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया

कुछ दिन महीने या साल भर पहले कितने लोग चौकीदार होने को गौरव की बात

जो देश में हो वो होने दो ( ग़ज़ल ) : डॉ लोक सेतिया “तनहा”

जो देश में हो वो होने दो जो देश में हो वो होने दो ,

बाज़ीगर जादूगर सौदागर छलिया (व्यंग्य) : डॉ लोक सेतिया 

एक भी अनेक भी जैसे कोई ठगने वालों की टोली हो। आपको ये सभी काल्पनिक

एक बाबा मांगते सभी देश ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया 

उनको उम्मीद थी भरोसा था यकीन था कोरोना की दवा की खोज की खबर का

ज़िंदगी से खिलवाड़ कब तक

शायद अभी भी देश की सरकार राज्यों की सरकारों को समस्या की जड़ तक पहुंचने

जनाब सच सच बोलो नहीं कुछ भी छिपाना है ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया 

सियासत की आदत होती है बताते कम हैं छिपाते ज़्यादा हैं। मगर ये क्या सभी

कहा झूठ ने यही सच है ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया

देश आत्मनिर्भर है झूठ को लेकर अब आयात की ज़रूरत नहीं है कोई खरीदार विदेश

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