बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया 

काली रात के अंधेरे में सुनसान वीरान जगह उन सभी बड़े बड़े लोगों की दुनिया

खुद को आईने में देखना

लोग अपनी पुस्तक के पहले पन्ने पर अपने बारे में लेखन और किताब की बात

विश्व कल्याण नहीं खुदगर्ज़ी में अंधे हम लोग

सोच कर दिल घबराता है कि हम कहां से चले थे हमको किधर जाना था

कांच का लिबास संग नगरी

उनकी नकाब हट गई तो उनका असली चेहरा सामने आएगा जो खुद उन्हीं को डराएगा।

हिंदी, हिंदीं दिवस और हिंदी वाले

मेरी ज़िंदगी गुज़री है हिंदी में लिखते लिखते। 44 साल से तो नियमित लिखता रहा

आम राय से फैसला ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया

दो पक्ष बन गये थे और तमाम प्रयास करने पर भी कोई निर्णय हो नहीं

हम जड़ता में जकड़े लोग (तर्कहीन समाज)

दुनिया अनुभव से सबक सीखती है और अनावश्यक अनुपयोगी अतार्किक बातों से पल्ला झाड़कर सही

हैवानियत शर्मसार नहीं

समझते हैं अभी भी दुनिया उन्हीं से है जिनको नहीं खबर आना जाना किधर से

मां ने कहा है बेटा बहु को ले आओ ( कहानी ) : डॉ लोक सेतिया 

चिट्ठी लिखी है मां ने बेटे के नाम। सबसे ऊपर लिखा है राम जी का

सवाल उल्टे – सीधे जवाब सीधे सच्चे

पहला सवाल :- भाजपा नेताओं को लॉक डाउन के नियम से छूट कैसे है। क्या