मदर्स डे स्पेशल :  डॉ. लोक सेतिया की कविता – “माँ के आंसू”

माँ के आंसू 

कौन समझेगा तेरी उदासी
तेरा यहाँ कोई नहीं है
उलझनें हैं साथ तेरे
कैसे उन्हें सुलझा सकोगी।

ज़िंदगी दी जिन्हें तूने
वो भी न हो सके जब तेरे
बेरहम दुनिया को तुम कैसे
अपना बना सकोगी।

सीने में अपने दर्द सभी
कब तलक छिपा सकोगी
तुम्हें किस बात ने रुलाया आज
माँ, तुम कैसे बता सकोगी।

इक भजन सब से अलग है

भगवन बनकर तू अभिमान ना कर ,
तुझे भगवान बनाया हम भक्तों ने।

पत्थर से तराशी खुद मूरत फिर उसे ,
मंदिर में है सजाया हम भक्तों ने।

तूने चाहे भूखा भी रखा हमको तब भी ,
तुझे पकवान चढ़ाया हम भक्तों ने।

फूलों से सजाया आसन भी हमने ही ,
तुझको भी है सजाया हम भक्तों ने।

सुबह और शाम आरती उतारी है बस ,
इक तुझी को मनाया हम भक्तों ने।

सुख हो दुःख हो हर इक क्षण क्षण में ,
घर तुझको है बुलाया हम भक्तों ने।

जिस हाल में भी रखा है भगवन तूने ,
सर को है झुकाया हम भक्तों ने।

दुनिया को बनाया है जिसने कभी भी ,
खुद उसी के है बनाया हम भक्तों ने।

ये भजन मेरी माता जी हर समय गाती
– गुनगुनाती रहती थी।

  -डॉ. लोक सेतिया

            

 

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