।।मीठे पानी की धार।।
राजीव कुमार झा
सागर
तुम किसकी
प्यास
बुझाते
खारे पानी की
लहरों में
इठलाते
दूर दिशाओं में
लहराते
सुबह शाम तुम
झूम झूम कर
गाते
धूप भरे आंगन में
हम बादल को
अपने पास बुलाते
वे आते
सूखे खेतों में
राह बनाते
नदियों में
मीठे पानी की धार
बहाते
सागर तट की ओर
निकल जाते
पहाड़ से गिरते
झरने
सागर!
तुम्हें देखकर
धरती पर बलखाते
रेतभरी धरती पर
बादल
रिमझिम फुहार
बरसाते