भारत के भाल और मेरे भाल के बीच तुलनात्मक व्यंग्य रचना… डीपी सिंह

।।भारत के भाल और मेरे भाल के बीच तुलनात्मक व्यंग्य रचना।। बाथरूम में मचा हुआ

अवसरवादी आचरण से नेताओं की विश्वसनीयता घटी- डॉ. रामनिवास ‘मानव’

हिंदीभाषा डॉट कॉम परिवार ने गणतंत्र दिवस पर कराई भव्य आभासी काव्य गोष्ठी इंदौर (मप्र)।

गोपाल नेवार ‘गणेश’ सलुवा की कविता

।।श्रद्धा हो तो ऐसी।। गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा दिल ने ये कहा आँख से दिल ने

डीपी सिंह की रचनाएं

नपुंसकता या शान्ति की भ्रान्ति? देश में हम थे कभी लावा धधकती क्रान्ति का दौर,

संजय जायसवाल की कविता : रूमाल का कोरस

।।कविता-रूमाल का कोरस।। संजय जायसवाल उस दिन जब तुमने चुपके से आंखों की मोतियों को

डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया दारू-मुर्गा और अब, फ्री बिजली का चाव लोकतन्त्र तो बिक गया, मुफ़्त तन्त्र के

डीपी सिंह की रचनाएं

नेतृत्व के सत्तर साल याद रहे अधिकार मगर कर्तव्य निभाना भूल गये अपने महल बने,

डॉ. रश्मि शुक्ला की कविता : गणतंत्र दिवस पर संकल्प

।।गणतंत्र दिवस पर संकल्प।। डॉ. रश्मि शुक्ला गणतंत्र दिवस पर हम सब मिलकर संकल्प करें,

राजीव कुमार झा की कविता : शरद पूर्णिमा

।।शरद पूर्णिमा।। राजीव कुमार झा बारिश के थमते ही रात जगमगा उठी चाँद आकाश में

सुलेखा सुमन की कविता : ये जीवन है

।।ये जीवन है।। सुलेखा सुमन छांव हमेशा के लिए नहीं रहती जीवन की धूप का