डीपी सिंह की कुण्डलिया

चर्बी से वाराह की, कोई नहीं मलाल। चर्बी चढ़ी दिमाग़ पर, वही बनी है काल।।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर जाने सबकुछ

युग प्रवर्तक बाबू भारतेंदु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितम्बर सन् 1850 को काशी के प्रसिद्ध

प्रमोद तिवारी की कविता : “प्रथम जीव”

“प्रथम जीव” जीव एक था न तब, सूर्य टूटता था जब, पिंड कई बन गये,

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डीपी सिंह की कुण्डलिया

बैठे हैं नव वर्ष में, जाल लिए मुस्तैद। जैसे गुजरेगी ख़ुशी, कर लेंगे हम क़ैद।।

गोपाल नेवार की कविता : “फूल की सादगी”

“फूल की सादगी” ************** पौधों की शान हूँ मैं कली से फूल में परिवर्तित होकर

“बंटवारा” : (कहानी) :– श्रीराम पुकार शर्मा

पैतृक सम्पति सम्बन्धित अपनी संतानों में बंटवारे सम्बन्धित समस्या को केंद्र कर लिखी गई मेरी

गोपाल दास ‘नीरज’ जयंती 4 जनवरी पर विशेष

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल

श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ की कविता : “शैतान के अपने लगते हो”

“शैतान के अपने लगते हो“ तुम नजरें तो आसमान पर रखते हो पर ये क्या

डीपी सिंह की कुण्डलिया

इक्किस के सम्मान में, मचा रहे सब शोर। घड़ी-घड़ी सबकी नजर, उठे घड़ी की ओर।।

सेवा (लघुकथा) : माला वर्मा

“थोड़ा चावल और ले लीजिए अम्मां जी !” “नहीं बहू, अब पेट भर गया…।” “ले