राजीव कुमार झा की कविता : मौसम

।।मौसम।। राजीव कुमार झा हम कहां राह में अब रुक जाते तुम्हारे चरणों पर शीश

राजीव कुमार झा की कविता : वसंत का आंगन

।।वसंत का आंगन।। राजीव कुमार झा वसंत की हवा सुबह में आयी वह धूप में

राजीव कुमार झा की कविता : वसंत

।।वसंत।। राजीव कुमार झा इतने दिनों के बाद अब याद आता वह पल इसके बाद

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया खादी कुर्ता है धवल, नई नवेली कार चाटुकार हैं सङ्ग में, आगे पीछे चार

कवि विक्रम क्रांतिकारी की कविता : अब देखकर उसमें इश्क क़ा इज़हार कीजिए!

देखो न नौकरी की चाह में, घर वर्षो से त्यागा हैं। माँ कहती है घर

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया जग में है इक क़ौम जो, करती “गन” की बात स्वांग करे डर का

डीपी सिंह की रचनाएं

नेतृत्व जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते रह गए वो वतन छाँटते-काटते बाँटते जातियों में किसी

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया फिर से घर में हों वही, एक-नेक परिवार सुगठित स्वस्थ समाज से, जुड़ें सभी

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया मय कुटुम्ब हो आप को, मङ्गलमय नव-वर्ष सकल विश्व में शान्ति हो, पायें सब

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया दिल्ली ऐसा राज्य है, जैसे कोई नार उस बेचारी नार के, हैं दो दो