मई दिवस पर विशेष : अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता – बाल मजदूर

।।बाल मजदूर।। आंख मिचता आसुओं से धरती को सींचता लेकर भूख पेट में चल पड़ता

डीपी सिंह की रचनाएं

।।ज़िन्दगी।। वक़्त की छलनी से होकर उम्र छनती जा रही है देह, लगता है धनुष

राम पुकार सिंह की कविता : बाबू कुंवर सिंह

।।बाबू कुँवर सिंह।। राम पुकार सिंह बाबू कुँवर खुद शेर थे उनके गजब अंदाज थे,

डीपी सिंह की रचनाएं

सामयिकी नाम पर स्वातन्त्र्य के स्वछन्दता सिखला रहे हैं वो हमारे संस्कारों की जड़ें ही

भावनानी के भाव : मौत का मूल्यांकन

।।मौत का मुल्यांकन।। किशन सनमुख़दास भावनानी मैंने भी सोचा हम तो यूं ही जिंदगी जिए

भावनानी के भाव : बच्चों में ईश्वर अल्लाह बसते हैं

।।बच्चों में ईश्वर अल्लाह बसते हैं।। किशन सनमुख दास भावनानी घर की चौखट चहकती है

राजीव कुमार झा की कविता : बीता पहर

।।बीता पहर।। राजीव कुमार झा यौवन की छटा तुम्हारी मुस्कान भी निराली मादक हो गये

श्री गोपाल मिश्र की कविता : साहित्य प्रबंधन

।।साहित्य प्रबंधन।। किसे कहते हो तुम कविता? लय, रूपक, श्लेष में अलंकृत। तुकांत शब्द-विन्यास! या

राजीव कुमार झा की कविता : झिलमिल

।।झिलमिल।। राजीव कुमार झा बाजार में इश्क के सारे रंग बेनूर हो गये सुबह में

राजीव कुमार झा की कविता : बेहद संयम से

।।बेहद संयम से।। राजीव कुमार झा जो कोई नारी से प्रपंच रचेगा वही नरक में