डीपी सिंह की रचनाएं…

चरखा बोला मैं कभी, ले आया था क्रान्ति बुल्डोजर बोला तभी, मैं लाता हूँ शान्ति

डीपी सिंह की रचनाएं…

सनातन, शर, न ही शमशीर या गन-तन्त्र से हारा न ही यह राक्षसी उत्पात, काले

डी.पी. सिंह की रचनाएं

सुमुखी सयानी देख, परियों की रानी देख आँखें मूँद रूपसी की बातों में न आइये

डी.पी. सिंह की रचनाएं…

घोषित की मी लॉर्ड ने, जायज़ वेश्यावृत्ति भुगतेगा यह देश अब, इनकी नीच प्रवृत्ति इनकी

डीपी सिंह की रचनाएं

पल में प्रसन्न हो के, भूल क्षमा करते हैं ऐसे भोले भण्डारी के चरणों में

डीपी सिंह की रचनाएं…

।।आह्वान।। सभ्यता प्राचीनतम, संस्कृति का परचम लहराता जग में हमारा हिन्दुस्थान है हिमगिरि ताज है

डीपी सिंह की रचनाएं

जन्म मिलता है हमें जैसा है प्रारब्ध किन्तु मन वाणी गुण कर्म प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं

डीपी सिंह की रचनाएं…

बात बात में (मनहरण घनाक्षरी छन्द) बात जो निकलती है, दूर तक जाती है वो

डीपी सिंह की रचनाएं

(अ)न्यायपालिका काग़ज़ात देख के भी राम का न काम किया विधि भी न बच पाये

डीपी सिंह की रचनाएं

सत्ता के उत्तराधिकारी ‘भारत की खोज’ नाम की किताब लिख दी तो सोचा देश, हवा,