डीपी सिंह की रचनाएं

सर छुपाने को भी जर-जमीं चाहिये भाव हों अंकुरित, तर-जमीं चाहिये चाह है तुझ पॅ

डीपी सिंह की रचनाएं

प्रश्न है हर तरफ, जो निराधार है वंश का क्यों पिता से जुड़ा तार है,

डीपी सिंह की रचनाएं

गन्दे होते हैं बहुत, बवासीर – से रोग असल दर्द होता कहीं, कहीं बताते लोग

डीपी सिंह की रचनाएं

जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते रह गए वो वतन छाँटते-काटते बाँटते जातियों में किसी वर्ग

डीपी सिंह की रचनाएं

यह गहन मौन में जो निहित नाद है आत्म-परमात्म के बीच संवाद है राम मय

डीपी सिंह की रचनाएं

अब तो कागा भी सन्देश लाते नहीं और कबूतर भी चिट्ठी ले जाते नहीं याद

डीपी सिंह की रचनाएं

पीढ़ियों के त्याग-तप का फल भगीरथ को मिले तब सफलता देवसरि के अवतरण-पथ को मिले

डीपी सिंह की रचनाएं

कालाबाजारी अगर, करनी होती बन्द। देते सूली पर चढ़ा, भ्रष्टाचारी चन्द।। भ्रष्टाचारी चन्द, किन्तु अन्याय

डीपी सिंह की रचनाएं

उसने सोचा, छेड़-छाड़ का समाधान वो पायेगा परीजान के बदले पत्नी पहलवान यदि लायेगा लेकिन

डीपी सिंह की रचनाएं

।।आन्दोलन।।  माना, कुछ उपलब्धि देश ने आन्दोलन से पाई है पर इसकी औलादों ने तो