रिया सिंह की कविता : “पण्डित जी”

“पण्डित जी”

धर्म का चोला पहनकर
अधर्म वो करते रहते हैं,
कुछ पण्डित ऐसे भी
जो खुद को ईश्वर कहते हैं।
हांथ में माला लेकर चलते
मुख से राम – नाम है जपते,
यदि कहीं हो यज्ञ कराना
सबसे पहले धन तय करते।
माथे पर हैं तिलक लगाते
अपने चरणों में स्वर्ग बताते,
नज़रों से बच कर वो सबके
पीठ पीछे मांस भी हैं खाते।
आज के पण्डित हैं कुछ ऐसे
खुद को वो भगवान हैं कहते,
घर पर आलीशान से जीते
और अब तो मदिरा भी पीते।
हांथ में लिए गीता हैं चलते
पाप – पुण्य से कहां वो डरते,
दो शब्द शास्त्र के पूछ लो तो
हमको ही वो मूर्ख हैं कहते।
धर्म का चोला पहनकर
अधर्म वो करते रहते हैं,
कुछ पण्डित ऐसे भी
जो खुद को ईश्वर कहते हैं।
-रिया सिंह  ✍🏻
स्नातक, तृतीय वर्ष, (हिंदी ऑनर्स)

टीएचके जैन कॉलेज

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