मां ने कहा है बेटा बहु को ले आओ ( कहानी ) : डॉ लोक सेतिया 

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

चिट्ठी लिखी है मां ने बेटे के नाम। सबसे ऊपर लिखा है राम जी का नाम। फिर लिखा है करना है इक ज़रूरी काम। इस से पहले कि आगाज़ करो याद करो शपथ निभाने को भूलने का अंजाम। दो शब्दों में समझ लो किस्सा तमाम देखो ढलने लगी है जीवन की शाम। बनाओ जो भी बनाना है बनाओ पर पहले मेरी बहु को घर पर ले कर आओ फिर आशिर्वाद दोनों मिलकर मुझसे पाओ। संग संग भूमिपूजन करते हैं ये बात है सच सच से नहीं मुकरते हैं।

रामायण पढ़ी है तुमने कभी बच्चे धार्मिक अनुष्ठान बिन अर्धांगनी हैं आधे अधूरे कच्चे। बनवानी होगी कोई सोने की सबसे ऊंची मूर्ति छोटी बनाना तुम नहीं जानते क्या अपनी मां का कहा भी नहीं मानते। तैयार है कब वो आने को दुलारी है सुहागिन मेरी है दुलारी तुम राजकुंवर तो वो भी है इक राजकुमारी। इक बात समझ लो पत्नी से नहीं जीतोगे ये है वो जिस से सब दुनिया है हारी। ये राम राज्य कैसा है महलों में शान से रहते राजा और बन बन भटकती है जनक दुलारी।
मां हूं बेटे के अवगुण कैसे बताऊं मुझे नहीं मालूम घर को स्वर्ग कैसे बनाऊं मैं ये ज़िद छोड़ो घर बहु लो लाऊं मैं मन की बात मैं भी उसको बताऊं मैं अपने हाथों से महंदी उसको लगाऊं मैं दुल्हन की तरह खुद उसको सजाऊं मैं। मेरा घर बने मंदिर कहीं और क्यों जाऊं मैं। खत्म करो सुनी थी दादी नानी से जो कहानी। इक था राजा इक थी रानी। शर्म को चाहिए चुल्लू भर पानी कब तक चलेगी आखिर मनमानी। खत को तार समझना कहीं मत बात को बेकार समझना पहले कभी नहीं समझे हो इस बार समझना। सात कसम निभाने का व्यवहार समझना।

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