।।जिंदगी की डोर।।
राजीव कुमार झा
कभी मुहब्बत
जिंदगी का पैगाम हो जाता
तुम्हारे साथ
जो घर-बाहर जिंदगी
बिताता
मुहब्बत की डोर में
सपनों का आकाश
रंग-बिरंगे फूलों से सजाता
बरसात में बादल
समंदर से उठकर
धरती के पास उड़ता
आता
मुहब्बत में वीरान जंगल
हरा भरा हो जाता
मुहब्बत के साथ
सबसे बातें करता आदमी
घर के बाहर आकर
कभी अकेला नहीं रहा
मुहब्बत में कभी
तुमने जो झूठ-सच
कहा
उसके बारे में सबको
सारी बातों का पता
तुम्हारी मुस्कान को
देखकर चल गया
मुहब्बत में
यह सब तुमने क्या किया