राजीव कुमार झा की कविता : गुलाब की कली

।।गुलाब की कली।।
राजीव कुमार झा

गुलाब की महकती
ख़ामोश कली याद
आती
उन दिनों की कहानी
तब तुम प्यार में गलियों से
गुजरती हंसती
पागल बनी फिरती
तुम्हें देखकर
मुस्कुराती धूप अकेली
शाम की तनहाई में
तब लालटेन के पास
बैठकर कहानियां पढ़ती
याद आतीं आज भी
सबको स्कूल में तुम्हारी
सुनाई कविताएं
जो सबकी
विस्मृति में समाकर
दुपहरी में
हरे भरे बाग बगीचों के
किनारे दीवार पर
उड़ती धूल सी जम जाती
याद दिलाने पर
उसके बारे में तुम हंसकर
कुछ भी नहीं बताती
सिर्फ गुलाब के
इन फूलों के पास आती
सुबह महकने लगती
गुलाब की कोई कली

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *