दुर्गेश बाजपेयी की कविता : आकांक्षा

आकांक्षा

तुम ही हो ज्वाला सी सघन,
तुम में हैं मटमैली कलमें,
तुम ही तेज मेरा हो साथी,
तुम ही हो निम्न पवन में।

तुम्हारे इर्द-गिर्द उषा की है तेज जो शामिल
वो मंद ध्वनी का जो संजोग है शामिल,
बड़ा ही खूबसूरत है बड़ा सुरीला है वो;
तुम्हारे स्पर्श सा कोमल वो तन सा चमकीला है वो।

तुम्हारे अधरों में जो बसी हुई मीठी सी राग है,
जिसे सुनकर हुआ कोई आज यूँ कामयाब है,
तुम्हारे नयनों में जो बसे हुए शीतल से बादल,
जो हैं खोज रहे किसी एक धरा की बंजर भूतल
जिनमें बरस के वो बंजर भू को भी सघन बनायें,
महज़ एक बाग सा महकूँ मैं अगर तुम जीवन में आये।

दुर्गेश बाजपेयी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *