राजीव कुमार झा की कविता : बेहद संयम से

।।बेहद संयम से।।
राजीव कुमार झा

जो कोई नारी से
प्रपंच रचेगा
वही नरक में आकर
कभी रहेगा
नारी मन सुंदर सरल
बना होता
पुरुष प्रेम का बीज
कभी इसमें बोता
वह इठलाती नदिया सी
जीवन की धारा में
बहती
तट पर आकर
सदा प्रेम का
सच्चा भाव प्रकट करती
वह धरती सी
बारिश में हंसती रहती
मन की बातों को
बेहद संयम से कहती
उसे प्रेम प्रपंच का
भाव नहीं भाता
सीधा सादा पुरुष
उसे बस मन का भाव
बता पाता
आकाश उसी पल
जल बरसाता
आम के पेड़ों पर
सुरभित मंजर छा जाता
चांद रात को गीत
सुनाता
अरी प्रिया
चैत का मौसम
सबको खूब सुहाता
बाग बगीचों में
अब गर कोई जाता
हरियाली में
वह दुपहरी में
सबको अपने पास
बुलाता

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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